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Thursday 2 June 2016

मन की बात (Man ki baat)

मन की बात

"हर रात आँख भर आती है।
पलकों के किनारे न चाहते हुए भी उसकी यादों से भीग जाते हैं।
'गर कोई पूछे कि
किन ख्यालों में गुम हो तुम,
बहा रही हो जो आँसू
वो किसके लिए है।
तो........?
निरूत्तर-सी झुका लेती हूँ नजरें।
छुपा लेती हूँ
सबसे अपना गम।।
भारी मन से टोह ले लेती हूँ
उस ओर से
कि...नहीं कह पाऊँगी कुछ भी
क्या बीत रही है
मन पे।।
चुप रहने की अच्छी तालीम दे गया कोई।
बड़े अदब से चुपचाप जिंदगी से निकल गया कोई।।
न शिकायत का मौका दिया।
न कभी कोई उलाहने की बात कही।।
बस छोड़ गया वक़्त के हाथों मुझे
जिसमें कोई सज़ा भी
वक़्त पर मुकरर न की जा सके।
बहुत जतन से
संभाल रही हूँ हालात को...
मुट्ठी भर रेत-सी
रह गई है साँसे हाथ में
और आँखों से गिरते अविरल आंसू
भीगो रहे है सासों की मिट्टी को।
कि....नहीं कर पाऊँगी कभी
खुद से अलग उसे
जो जिंदा है मुझमें अपनी सासों को
मेरे भरोसे रख कर।।